Sunday, February 13, 2011
हिम्मत बड़ा रहा हूँ
कुछ टूटे सपने आज बहुत चुभ रहे हैं ,
इस दर्द से सपने अश्क बनकर गिर रहे हैं|
इन अश्कों की गहराई में अब सब धुंधला नज़र आता है
कुछ लिकने से पहले अब तो कागज़ भी अश्कों से लिपटकर सिकुड़ जाता है |
इस जिंदगी की चाहत में कुछ साल पहले चला था जहाँ से
...आज वही पर खड़ा होकर फिर कदम बदने की हिम्मत जुटा रहा हूँ
इस बार बदने से पहले सपने टूटने पर खुद न टूट जाऊं इतनी हिम्मत बड़ा रहा हूँ
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